कविता का सारांश

कविता ‘हाथी चल्लम चल्लम’ के रचयिता श्रीप्रसाद हैं। इस कविता में कवि ने एक हौदे में बैठकर बच्चों द्वारा की गई हाथी की सवारी का वर्णन किया है। बच्चे एक हौदे में बैठकर हाथी पर सवार होकर खूब मज़े कर रहे हैं। हाथी हौले-हौले चल रहा है। हाथी की सैंड लंबी है और दाँत भी लंबे-लंबे हैं। अपने सिर को मटकाता, नखरे दिखाता हाथी अपनी मस्त चाल में चला जा रहा है। जब हाथी चलता है। तो उसकी पर्वत जैसी देह थुलथुल कर हिलती है। हाथी के पाँव खंभे की तरह भारी हैं। हाथी अपने पैरों की ‘धम्म-धम्म’ की आवाज़ के साथ आगे बढ़ रहा है। बच्चे कह रहे हैं कि हाथी के जैसी कोई सवारी नहीं है। हाथी का महावत पगड़ी बाँधकर बैठा है। हम बच्चे हाथी पर हौदे में बैठे हैं। बच्चे कह रहे हैं। कि हम हाथी पर सवार होकर दिनभर घूमेंगे। पहले तो बच्चे हाथी को नाचने के लिए कहते हैं, फिर यह कहकर वे मना कर देते हैं कि कहीं वे गिर न जाएँ।

काव्यांशों की व्याख्या

  1. हल्लम हल्लम हौदा, हाथी चल्लम चल्लम,
    हम बैठे हाथी पर, हाथी हल्लम हल्लम।
    लंबी लंबी लँड फटाफट, फट्टर फट्टर
    लंबे लंबे दाँत खटाखट, खट्टर खट्टर।
    भारी भारी बँड मटकता. झम्मम झम्मम,
    हल्लम हल्लम हौदा, हाथी चल्लम चल्लम।

शब्दार्थ: हौदा-हाथी की पीठ पर कसा जाने वाला आसन, जिस पर बैठकर लोग सवारी करते हैं। मूंड़-सिर।।

प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक रिमझिम, भाग-1 में संकलित कविता”हाथी चल्लम चल्लम’ से ली गई हैं। इस कविता के रचयिता श्रीप्रसाद हैं। इसमें उन्होंने हाथी की सवारी करते बच्चों के उमंग और उत्साह को व्यक्त किया है।

व्याख्या: उपर्युक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि बच्चे हाथी के ऊपर हौदे में सवार होकर उसकी सवारी कर रहे हैं। हाथी की सैंड और दाँत लंबे हैं। अपने भारी भरकम सिर को मटकाता हुआ हाथी बढ़ता जा रहा है।

  1. पर्वत जैसी देह थुलथुली, थल्लम थल्लम
    हालर हालर देह हिले, जब हाथी चल्लम
    खंभे जैसे पाँव धपाधप, बढ़ते धम्मम,
    हल्लम हल्लम हौदा, हाथी चल्लम चल्लम।
    हाथी जैसी नहीं सवारी, अग्गड़े-बग्गड़
    पीलवान पुच्छन बैठा है, बाँधे पग्गड़
    बैठे बच्चे बीच सभी हम, डग्गम डग्गम,
    हल्लम हल्लम हौदा, हाथी चल्लम चल्लम।

शब्दार्थ: देह-शरीर। थुलथुल-मोटाई के कारण ढीला या हिलता हुआ शरीर। पीलवान-महावत। पग्गड़-पगड़ी।

प्रसंग: पूर्ववत।

व्याख्या: हाथी का शरीर पर्वत जैसा है। जब वह चलता है तो उसका भारी-भरकम शरीर हिलता है। उसके खंभे जैसे पाँव धपाधप करते हुए बढ़ रहे हैं। हाथी जैसी कोई सवारी नहीं है हाथी का महावत पगड़ी बाँधकर बैठा है। बच्चे कह रहे हैं कि हम सब हाथी के ऊपर हौदे में बैठे हैं।

  1. दिनभर घूमेंगे हाथी पर, हल्लर हल्लर
    हाथी दादा, जरा नाच दो, थल्लर थल्लर
    अरे नहीं, हम गिर जाएँगे धम्मम धम्मम,
    हल्लम हल्लम हौदा, हाथी चल्लम चल्लम।

शब्दार्थ: जरा-थोड़ा, कम।

प्रसंग: पूर्ववत।

व्याख्या: बच्चे कह रहे हैं कि हम लोग दिनभर हाथी पर घूमेंगे। बच्चे हाथी दादा से नाचने के लिए भी कहते हैं। पर फिर बच्चे कहते हैं कि नहीं, यदि हाथी दादा नाचेंगे तो हम गिर जाएँगे। वे हाथी को नाचने से मना करते हैं।

प्रश्न-अभ्यास
(पाठ्यपुस्तक से)

हाथी मेरे साथी

बताओ तो जानें

NCERT Solutions for Class 1 Hindi Chapter 22 हाथी चल्लम चल्लम Q1


कौन कैसा?

कविता पढ़कर बताओ।

हाथी ‘चल्लम चल्लम
सँड फट्टर फट्टर
खट्टर खट्टर दाँत
लंबी लंबी सूँड़
देह थुलथुली थल्लम थल्लम
पाँव धपाधप,
बच्चे, डग्गम डग्गम

Related Topic :

NCERT Book for Class 1

NCERT Solution for Class 1

What is LibreOffice? LibreOffice Impress Features ?

LibreOffice Impress CCC Questions and Answer in Hindi 2022

CCC LibreOffice Calc Paper Questions with Answers

CCC NIELIT Quiz 2022

Interview Questions and Answers for Experience

MCQ

Interview Questions and Answers for Freshers

Leave a Comment