CBSE Board NCERT Solutions for Class 10th Hindi Chapter17-संस्कृति (Course A)
CBSE NCERT Solutions for Class ten Hindi Chapter17 – संस्कृति (Course A)


भावार्थ :
सार


लेखक कहते हैं की सभ्यता और संस्कृति दो ऐसे शब्द हैं जिनका उपयोग अधिक होता है परन्तु समझ में कम आता है। इनके साथ विशेषण लगा देने से इन्हे समझना और भी कठिन हो जाता है। कभी-कभी दोनों को एक समझ लिया जाता है तो कभी अलग। आखिर ये दोनों एक हैं या अलग। लेखक समझाने का प्रयास करते हुए आग और सुई-धागे के आविष्कार उदाहरण देते हैं। वह उनके आविष्कर्ता की बात कहकर व्यक्ति विशेष की योग्यता, प्रवृत्ति और प्रेरणा को व्यक्ति विशेष की संस्कृति कहता है जिसके बल पर आविष्कार किया गया।

लेखक संस्कृति और सभ्यता में अंतर स्थापित करने के लिए आग और सुई-धागे के आविष्कार से जुड़ी प्रारंभिक प्रयत्नशीलता और बाद में हुई उन्नति के उदहारण देते हैं। वे कहते हैं लौहे के टुकड़े को घिसकर छेद बनाना और धागा पिरोकर दो अलग-अलग टुकड़ों को जोड़ने की सोच ही संस्कृति है। इन खोजों को आधार बनाकर आगे जो इन क्षेत्रों में विकास हुआ वह सभ्यता कहलाता है। अपनी बुद्धि के आधार पर नए निश्चित तथ्य को खोज आने वाली पीढ़ी को सौंपने वाला संस्कृत होता है जबकि उसी तथ्य को आधार बनाकर आगे बढ़ने वाला सभ्यता का विकास करने वाला होता है। भौतिक विज्ञान के सभी विद्यार्थी जानते हैं की न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत का आविष्कार किया इसलिए वह संस्कृत कहलाया परन्तु वह और अनेक बातों को नही जान पाया। आज के विद्यार्थी उन बातों को भी जानते है लेकिन हम इन्हे अधिक सभ्य भले ही कहे परन्तु संस्कृत नही कह सकते।

लेखक के अनुसार भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सुई-धागे और आग के आविष्कार करते तथ्य संस्कृत संस्कृत होने या बनने के आधार नही बनते, बल्कि मनुष्य में सदा बसने वाली सहज चेतना भी इसकी उत्पत्ति या बनने का कारण बनती है। इस सहज चेतना का प्रेरक अंश हमें अपने मनीषियों से भी मिला है। मुँह के कौर को दूसरे के मुँह  में डाल देना और रोगी बच्चे को रात-रात भर गोदी में लेकर माता का बैठे रहना इसी इसी चेतना से प्रेरित होता है। ढाई हजार वर्ष पूर्व बुद्ध का मनुष्य को तृष्णा से मुक्ति के लिए उपायों को खोजने में गृह त्यागकर कठोर तपस्या करना, कार्ल मार्क्स का मजदूरों के सुखद जीवन के सपने पूरा करने के लिए दुखपूर्ण जीवन बिताना और लेनिन का मुश्किलों से मिले डबल रोटी के टुकड़ों को दूसरों को खिला देना इसी चेतना से संस्कृत बनने का उदाहरण हैं। लेखक कहते हैं की खाने-पीने, पहनने-ओढ़ने के तरीके आवागमन के साधन से लेकर परस्पर मर-कटने के तरीके भी संस्कृति का ही परिणाम सभ्यताके उदाहरण हैं।

मानव हित में काम ना करने वाली संस्कृति का नाम असंस्कृति है। इसे संस्कृति नही कहा जा सकता। यह निश्चित ही असभ्यता को जन्म देती है। मानव हित में निरंतर परिवर्तनशीलता का ही नाम संस्कृति है।  यह बुद्धि और विवेक से बना एक ऐसा तथ्य है जिसकी कभी दल बाँधकर रक्षा करने की जरुरत नही पड़ती। इसका कल्याणकारी अंश अकल्याणकारी अंश की तुलना में सदा श्रेष्ठ और स्थायी है।

लेखक परिचय

भदंत आनंद कौसल्यायन


इनका जन्म सन 1905 में पंजाब के अम्बाला जिले के सोहाना गाँव में हुआ। इनके बचपन का नाम हरनाम दास था। इन्होने लाहौर के नेशनल कॉलिज से बी.ए. किया। ये बौद्ध भिक्षु थे और इन्होने देश-विदेश की काफी यात्राएँ की तथा बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार के लिए अपना सारा जीवन समर्पित कर दिया। वे गांधीजी के साथ लम्बे अरसे तक वर्धा में रहे। सन 1988 में इनका निधन हो गया।

प्रमुख कार्य

पुस्तक – भिक्षु के पत्र, जो भूल ना सका, आह! ऐसी दरिद्रता, बहानेबाजी, यदि बाबा ना होते, रेल का टिकट, कहाँ क्या देखा।

कठिन शब्दों के अर्थ

• आध्यात्मिक – परमात्मा या आत्मा से सम्बन्ध रखने वाला
• साक्षात – आँखों के सामने
• अनायास – आसानी से
• तृष्णा – लोभ
• परिष्कृत – सजाया हुआ
• कदाचित – कभी
• निठल्ला – बेकार
• मिनिषियों – विद्वानों
• शीतोष्ण – ठंडा और गरम
• वशीभूत –  वश में होना
• अवश्यंभावी – अवश्य होने वाला
• पेट की ज्वाला – भूख
• स्थूल – मोटा
• तथ्य – सत्य
• पुरस्कर्ता – पुरस्कार देने वाला
• ज्ञानेप्सा – ज्ञान प्राप्त करने की लालसा
• सर्वस्व – स्वयं को सब कुछ
• गमना गमन – आना-जाना
• प्रज्ञा – बुद्धि
• दलबंदी – दल की बंदी
• अविभाज्य – जो बाँटा ना जा सके

प्रश्नोत्तरी :
पृष्ठ संख्या: 130
प्रश्न अभ्यास

1. लेखक की दृष्टि में ‘सभ्यता’ और ‘संस्कृति’ की सही समझ अब तक क्यों नहीं बन पाई है?
उत्तर:
लेखक की दृष्टि में सभ्यता और संस्कृति शब्दों का प्रयोग बहुत ही मनमाने ढ़ंग से होता है। इनके साथ अनेक विशेषण लग जाते हैं; जैसे – भौतिक-सभ्यता और आध्यात्मिक-सभ्यता इन विशेषणों के कारण शब्दों का अर्थ बदलता रहता है। और इन विशेषणों के कारण इन शब्दों की समझ और गड़बड़ा जाती है। इसी कारण लेखक इस विषय पर अपनी कोई स्थायी सोच नहीं बना पा रहे हैं।

2. आग की खोज एक बहुत बड़ी खोज क्यों मानी जाती है ? इस खोज के पीछे रही प्रेरणा के मुख्य स्रोत क्या रहे होंगे ?
उत्तर:
आग का आविष्कार अपने-आप में एक बहुत बड़ा अविष्कार है क्योंकि उस समय मनुष्य में बुद्धि शक्ति का अधिक विकास नहीं हुआ था। समय की दृष्टि से यह बहुत बड़ी खोज थी।

सम्भवत: आग की खोज का मुख्य कारण रौशनी की ज़रुरत तथा पेट की ज्वाला रही होगी। अंधेरे में जब मनुष्य कुछ नहीं देख पा रहा था तब उसे रौशनी की ज़रुरत महसूस हुई होगी, कच्चा माँस का स्वाद अच्छा न लगने के कारण उसे पका कर खाने की इच्छा से आग का आविष्कार हुआ होगा।

पृष्ठ संख्या: 131

3. वास्तविक अर्थों में ‘संस्कृत व्यक्ति’ किसे कहा जा सकता है?
उत्तर:
वास्तविक अर्थों में ‘संस्कृत व्यक्ति’ उसे कहा जा सकता है जिसमें अपनी बुद्धि तथा योग्यता के बल पर कुछ नया करने की क्षमता हो। जिस व्यक्ति में ऐसी बुद्धि तथा योग्यता जितनी अधिक मात्रा में होगी वह व्यक्ति उतना ही अधिक संस्कृत होगा। जैसे-न्यूटन, न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत का आविष्कार किया। वह संस्कृत मानव था। आज भौतिक विज्ञान के विद्यार्थियों को इस विषय पर न्यूटन से अधिक सभ्य कह सकते हैं, परन्तु संस्कृत नहीं कह सकते।

4. न्यूटन को संस्कृत मानव कहने के पीछे कौन से तर्क दिए गए हैं ? न्यूटन द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतो एवं ज्ञान की कई दूसरी बारीकियों को जानने वाले लोग भीन्यूटन की तरह संस्कृत नहीं कहला सकते, क्यों ?
उत्तर:
न्यूटन ने अपनी बुद्धि -शक्ति से गुरत्वाकर्षण के रहस्य की खोज की इसलिए उसे संस्कृत मानव कह सकते हैं। आज मनुष्य के पास भले ही इस विषय पर अधिक जानकारी होगी पर उसमें वो बुद्धि शक्ति नहीं है जो न्यूटन के पास थी वह केवल न्यूटन द्वारा दी गई जानकारी को बढ़ा रहा है। इसलिए वह न्यूटन से अधिक सभ्य है, संस्कृत नहीं।

5. किन महत्वपूर्ण आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सुई-धागे का आविष्कार हुआ होगा?
उत्तर:
सुई-धागे का आविष्कार शरीर को ढ़कने तथा सर्दियों में ठंड से बचने के उद्देश्य से हुआ होगा आवश्यकतानुसार शरीर को सजाने की जरूरत महसूस हुई होगी इसलिए कपड़े के दो टुकडों को एक करके जोड़ने के लिए सुई-धागे का आविष्कार हुआ होगा।

6. मानव संस्कृत एक अविभाज्य वस्तु है। किन्हीं दो प्रसंगों का उल्लेख कीजिए जब –
(क) मानव संस्कृति को विभाजित करने की चेष्टाएँ की गई।
उत्तर:
1. वर्ण व्यवस्था के नाम पर मानव संस्कृति को विभाजित करने की चेष्टाएँ की जाती हैं।
2. धर्म के नाम पर भी मानव संस्कृति को विभाजित करने की चेष्टाएँ की जाती हैं जिसका परिणाम हम हिंदुस्तान तथा पाकिस्तान नामक दो देश के रूप में देखते हैं।

(ख) जब मानव संस्कृति ने अपने एक होने का प्रमाण दिया।
उत्तर:
1. संसार के मज़दुरों को सुखी देखने के लिए कार्ल मार्क्स ने अपना सारा जीवन दुख में बिता दिया।

2. सिद्धार्थ ने अपना घर केवल मानव कल्याण के लिए छोड़ दिया।

7. आशय स्पष्ट कीजिए –

(क) मानव की जो योग्यता उससे आत्म-विनाश के साधनों का आविष्कार कराती है, हम उसे उसकी संस्कृति कहें या असंस्कृति?
उत्तर:

मानव हमेशा से ही अपनी सुरक्षा के लिए चिंतित रहा है इसलिए उसने मानवहित और आत्महित की दृष्टि से अनेकों आविष्कार किए हैं। यह आविष्कार जब मानव कल्याण की भावना से जुड़ जाता है, तो हम उसे संस्कृति कहते हैं। जब मानव की आविष्कार करने की योग्यता, भावना, प्रेरणा और प्रवृत्ति का उपयोग विनाश करने के लिए किया जाता है तब यह असंस्कृति बन जाती है। ऐसी भावनाओं को हम संस्कृति कदापि नहीं कह सकते।
रचना और अभिव्यक्ति

8. लेखक ने अपने दृष्टिकोण से सभ्यता और संस्कृति की एक परिभाषा दी है। आप सभ्यता और संस्कृति के बारे में क्या सोचते हैं, लिखिए।
उत्तर:

जैसा कि लेखक ने कहा है कि आज सभ्यता और संस्कृति का प्रयोग अनेक अर्थों में किया जाता है। मनुष्य के रहन-सहन का तरीका सभ्यता के अंतर्गत आता है। संस्कृति जीवन का चिंतन और कलात्मक सृजन है, जो जीवन को समृद्ध बनाती है। सभ्यता को संस्कृति का विकसित रुप भी कह सकते हैं।

भाषा अध्यन

9. निम्नलिखित सामासिक पदों का विग्रह करके समास का भेद भी लिखिए –
गलत-सलत
आत्म-विनाश
महामानव
पददलित
हिन्दू-मुसलिम
यथोचित
सप्तर्षि
सुलोचना
उत्तर:
1. गलत-सलत – गलत और सलत (द्वंद समास)
2. महामानव – महान है जो मानव (कर्म धारय समास)
3. हिंदू-मुसलिम – हिंदू और मुसलिम (द्वंद समास)
4. सप्तर्षि – सात ऋषियों का समूह (द्विगु समास)
5. आत्म-विनाश – आत्मा का विनाश (तत्पुरुष समास)
6. पददलित – पद से दलित (तत्पुरुष समास)
7. यथोचित – जो उचित हो (अव्ययीभाव समास)
8. सुलोचना – सुंदर लोचन है जिसके (कर्मधारय समास)

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